महात्मा गांधी की हत्या का एक गहन विश्लेषण। इसमें इस बात की व्याख्या है कि क्या यह सिर्फ एक सनकी की करतूत थी या पूरा समाज किसी न किसी रूप में इसके लिए अप्रत्यक्ष तरीके से जिम्मेवार था जिसका गांधी के मूल्यों में विश्वास कम हो रहा था? यह किताब गांधी के दिल्ली में आखिरी छह महीने के प्रवास पर आधारित है जहाँ उन्होंने अपने जीवन का आखिरी जादू गढ़ा था और वो था अपनी प्राणों की बलि देकर देश की एकता की रक्षा करना। यह किताब महात्मा के जीवन से सबक लेते हुए हमें अपनी गलतियों से रूबरू कराती है और पाश्चाताप की एक खिड़की मुहैया कराती है। यह गांधी की मृत्यु पर एक शानदार दूरगामी और विद्वतापूर्ण शोध है।
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