Lal Quila/लाल किला
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आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त 1891 को चांदोख ज़िला बुलन्दशहर उत्तर प्रदेश में हुआ था। ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में इनकी प्रतिष्ठा है। चतुरसेन शास्त्री की यह विशेषता है कि उन्होंने उपन्यासों के अलावा और भी बहुत कुछ लिखा है कहानियाँ लिखी हैं जिनकी संख्या प्रायः साढ़े चार सौ है। गद्य-काव्य धर्म राजनीति इतिहास समाजशास्त्र के साथ-साथ स्वास्थ्य एवं चिकित्सा पर भी उन्होंने अधिकारपूर्वक लिखा है। इनकी प्रकाशित रचनाओं की संख्या 186 है जो अपने ही में एक कीर्तिमान है। आचार्य चतुरसेन मुख्यतः अपने उपन्यासों के लिए चर्चित रहे हैं। अगर इतिहास को सरल तरीके से रोचकता के साथ प्रस्तुत किया जाए तो हर पाठक दिलचस्प के साथ पढ सकता है क्योंकि उसे युद्धों और संधियों की तिथियाँ याद रखने में कोई दिलचस्पी न होगी। इसी सिलसिले में आचार्य चतुरसेन शास्त्री जी की रचना ’लाल किला’ एक पठनीय रचना के रूप में में उपलब्ध है। उन्होंने इतिहास को बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है। हालांकि यह इतिहास लाल किले को आधार बना कर लिखा गया है जिसमें हुमायूँ से लेकर अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर तक का वर्णन मिलता है परंतु यह मुगल काल का अनछुआ इतिहास है‌।<br>लाल किला सदियों से भारत की आन-बान-शान का प्रतीक रहा है। लाल किला में रहकर सारे हिन्दुस्तान पर शासन चलाने वाले मुग़ल बादशाहों की रोचक और मार्मिक दास्तान को इस उपन्यास में बड़ी ही बारीकी और सजीवता से उकेरा गया है।
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