दत्त भारती ने अपने इस मार्मिक उपन्यास में समाज में धीरे-धीरे शामिल हो रही कुरीतियों को आधार बनाया है। इसकी कहानी पाठक को सोचने के लिए विवश करती है और साथ ही गर्त की ओर अग्रसर समाज का यथार्थवादी चित्रण दर्शाता है कि हम विकास नहीं विनाश की ओर बढ़ रहे हैं। धन के लिए मुनष्य किस स्तर तक गिर जाता है यह इस उपन्यास में स्पष्ट कयि गया है।
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