बाज़ारवादी युग में दरकते इंसानी रिश्तों पर लिखी आलोक श्रीवास्तव की ग़ज़लें उनके निजी अनुभवों का आईना हैं। आसान की कई रचनाओं में सामाजिक सरोकार के सबूत मिलते हैं। यह पुस्तक पन्नों के कैनवास पर शब्दों के रंग बिखेरने का एहसास कराती है जिसमें पाठक काव्य की हर विधा में निपुणता के साथ किसी सूफ़ियाना ख़्याल को सिर्फ एक दोहे में समेट देने के हुनर से रू-ब-रू होते हैं। पुस्तक की रचनाएँ पाठकों के मनोभाव में ऐसे प्रवेश करती हैं जैसे वह उनकी ही भावनाएँ हों। विद्वान रावण द्वारा विरचित ‘शिव तांडव स्त्रोत’ और गोस्वामी तुलसीदास के लिखे ‘रुद्राष्टक’ का हिंदी भावानुवाद भी आसान में समाहित है।
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